ओ मैया मैंने दो दो कुल अपनाए तन मन धन सब कर दिया अर्पण मेरे ना हो पाए ओ मैया मैंने दो दो कुल अपनाए....
एक कुल में मैंने जन्म लिया है बीस बरस वहां मैंने बिताये, ऐसे हो गए वो निर्मोही भेज के देश पराए ओ मैया मैंने दो दो कुल अपनाएं....
एक कुल में मैं ब्याह के आई सब अनजाने मैंने अपनाए, तन मन धन से करी है सेवा सबके हुक्म बजाए ओ मैया मैंने दो दो कुल अपनाए.....
बेटी से फिर बहू बनी मैं मां बनकर मैंने लाड लड़ाए, मेरे मन की कोई सुने ना नैनन नीर बहाए ओ मैया मैंने दो दो कुल अपनाए.....
मां बाबुल का मान बढ़ाया सास ससुर का वंश चलाया, जब मां मुझको पड़ी जरूरत लगने लगे पराए ओ मैया मैंने दो दो कुल अपनाए....
हर बेटी की यही कहानी यूं तो है ये सदियों पुरानी, बहू तो घर की होती लक्ष्मी क्यों कोई समझ ना पाये ओ मैया मैंने दो दो कुल अपनाए
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