यही सोच दिन-रात हरि जी हमें कैसे तारोगे
ना मानी आज्ञा मात पिता की अपनों का किया अभिमान हरि जी हमें कैसे तारोगे
ना करी सेवा सास ससुर की पति का किया अभिमान हरि जी हमें कैसे तारोगे
ना किया आदर जेठ देवर का बेटे का किया अभिमान हरि जी हमें कैसे तारोगे
ना करी सेवा गौ माता की काया का किया अभिमान हरि जी हमें कैसे तारोगे
ना करी सेवा साधु संत की माया का किया अभिमान हरि जी हमें कैसे तारोंगे
ना करी सेवा अपने गुरु की भक्ति का किया अभिमान हरि जी हमें कैसे तारोगे
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