मुझे दुखी करे संसार गंगा कहती हैं
यहां बुड्ढे बुढ़िया आते हैं आकर के शीश झुकाते हैं मैं कहां से लाऊं मुक्ति द्वार गंगा कहती हैं
यहां कुंवारे लड़के आते हैं आकर के शीश झुकाते हैं मैं कहां से लाऊं सुघर नरि गंगा कहती हैं
यहां नई नई बहूएं आती हैं आकर के शीश झुकाती हैं मैं कहां से लाऊं नंदलाल गंगा कहती हैं
यहां कुंवारी लड़कियां आती हैं आकर के शीश झुकाती हैं मैं कहां से लाऊं भरतार गंगा कहती हैं
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