श्री गोवर्धन महाराज तेरे सिर पर मुकुट विराज रहा
अंखियों में छुपा लूं तुमको पलकों में बिठा लूं तुमको तेरी सेवा करूं महाराज तेरे सिर पर मुकुट विराज रहा..
तो पे पान चढ़े तो पे फूल चढ़े तो पे चढ़े दूध की धारा तेरे सिर पर मुकुट विराज रहा...
चरणों की धूल जो पांऊं मिट जाए कष्ट हमारे मस्तक पर लगा लूं महाराज तेरे सिर पर मुकुट विराज रहा..
मैं खुशी से मंदिर आऊं चरणों में शीश झुकाऊं मैं विनती करूं महाराज तेरे सिर पर मुकुट विराज रहा..
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