लक्ष्मण भैया सिया वन में छोड़ो घर में रखने के काबिल नहीं हैं एक धोबी ने मारा है ताना मुंह दिखाने के काबिल नहीं हैं
रथ में बैठाये लक्ष्मण सिया को जाके घनघोर जंगल में छोड़ा , सीता रोती तड़पती अकेली आज कोई हमारा नहीं है लक्ष्मण भैया....
जान देने की सीता ने सोची वाल्मीकि और श्रषियों ने रोका , क्या खता बेटी मुझसे हुई है जान देने के काबिल नहीं हैं लक्ष्मण भैया....
No comments:
Post a Comment