एक राम के दो दो रूप मिले एक राम गुरु एक रामैया
जिसे देख के मन का कमल खिले एक राम गुरु एक रामैया
एक सदियों से चुपचाप खड़ा एक मीठे बोल सुनाता है सतगुरु बिन उसकी कद्र नहीं सतगुरु बिन नजर न आता है एक राम के......
अवतार मेरा एक दीपक है सतगुरु मेरा एक ज्योति है दोनों के बिना ना काम चले दोनों की जरूरत होती है एक राम के......
वो राम नजर तब आता है जब नजर यहां से मिलती है जो नजर के पर्दे खोल सके इस दर वो दवाई मिलती है एक राम के..
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