मेरी अंसुवन भींगे साड़ी आ जाओ कृष्ण मुरारी
क्या भूल गए बनवारी जब ऊंगली कटी तुम्हारी मैंने फाड़ी रेशमी साड़ी आ जाओ कृष्ण मुरारी
द्रोपदी ने याद दिलाई है तब याद वचन की आई है वो द्वारिका से आये बनवारी आ जाओ कृष्ण मुरारी
मैं पांच पति की नारी आज जुआं में मैं हारी , ये दुशासन है आया मेरे केश पकड़ के लाया मेरी खींची रेशमी साड़ी आ जाओ कृष्ण मुरारी
तुमने दुष्टों का मान घटाया है संतों का मान बढ़ाया है अब आई मेरी बारी जाओ कृष्ण मुरारी
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