अपनी जननी का आदर तो कर न सके जग जननी मनाने से क्या फायदा
खुद गीली रही तुमको सूखा किया , खुद भूंखी रही तुमको भोजन दिया , ऐसी जननी को भोजन करा न सके फिर भंडारे लगाने से क्या फायदा
कितने देव मनाये थे तेरे लिए , तेरे सुख के लिए वो तड़फती रही , ऐसी जननी को सुख तुम दे न सके जगराते कराने से क्या फायदा
मैं तो दिन रात तेरे ही संग में रही , तेरे संग में रही पर तू देख न सका , मेरे रूप का आदर तो कर न सके फिर मूरत बनाने से क्या फायदा
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