न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं यही सब संत कहते हैं यही सब वेद गाते हैं
न रोये वन गमन में और पिता की वेदनाओं पर उठाकर गोद में गीद को वो खुद आंसू बहाते हैं
न आये आप मथुरा से गोपियों का रूदन सुनकर द्रोपदी का रूदन सुनकर द्वारिका से सिधाये हैं
न वो स्वीकार करते हैं निमंत्रण नृप दुर्योधन का विदुर घर आप जाकर के साग छिलके का खाते हैं
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