यही नाम मुख में हो हरदम हमारे हरे कृष्ण गोविंद मोहन मुरारे
लिया हाथ में दैत्य ने जब कि खंजर कहा पुत्र से कहां है तेरा ईश्वर तो प्रहलाद ने याद की आह भरकर दिखाई पड़ा मुझको खंबे के अंदर है नर सिंह के रूप में राम प्यारे
हरे कृष्ण गोविंद मोहन मुरारे
सरोवर में गज ग्राह की थी लड़ाई न गजराज की शक्ति कुछ काम आई कहीं से मदद उसने जब कुछ ना पाई दुखी होकर
आवाज हरि को लगाई गरुण छोड़ कर नंगे पावों पधारे हरे कृष्ण गोविंद मोहन मुरारे
अजामिल अधम में क्या थी बुराई मगर आपने उसकी बिगड़ी बनाई घड़ी मौत की सर पै जब उसके आई तो बेटे नारायण की रट लगाई परंतु खुल गए उसको बैकुंठ द्वारे
हरे कृष्ण गोविंद मोहन मुरारे
दुशासन ने तक हाथ अपने बढ़ाएं तो दृग बिंदु ने द्रौपदी थे गिराए न की कुछ देर द्वारिका से सिधारे अमित रूप यूँ वन के साड़ी में आए कि हर तार था आप का रूप धारे हरे कृष्ण गोविन्द मोहन मुरारे
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