टेर भक्तों की सदा सुनता मुरलिया वाला अपने भक्तों पे दया करता मुरलिया वाला
सभा के बीच में जब रोई द्रोपदी नारी , जाके तब चीर बढ़ाया है मुरलिया वाला
पकड़ के खम्भ से प्रहलाद को जब बांध दिया , फाड़ के खम्भ निकल आया मुरलिया वाला
पकड़ जब दाब लिया गज ने पुकारा रोकर आया , आया तब गज को बचाने है मुरलिया वाला
भक्त नरसी पे जब कर्ज बढ़ते देखा , आके खुद कर्ज चुका आया मुरलिया वाला
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