भवानी कब चली आई न तुम समझे न हम समझे
अचानक ज्योति लहराई न तुम समझे न हम समझे
भवन के कोने कोने से मधुर ये गूंज आती है बजी किस ओर शहनाई न तुम समझे न हम समझे
तिलक माथे लगाने से कोई पंडित नहीं पंडित नहीं होता जटा लम्बी रखाने से कोई साधू नहीं होता लहर भक्ति की कब आई न तुम समझे न हम समझे
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