कन्हैया होली खेलन आयो रे पकड़ो री बृजनारि
संग में सब उतपाती ग्वाल ऐंठ के चलें अदा की चाल हाथ पिचकारी फेंकें गुलाल कमोरी रंगन की भर लायो रे पकड़ो री बृजनारि
मलो मुख ऊपर गोबर आज एक भी सखा जाय नहीं भाज लाज को होरी में कहां काज बड़े भाग्यन से फागुन आयो रे पकड़ो री बृजनारि
दया आज्ञा बृषभानु दुलारी आय गई इतने में बजनारी सबने मिल पकड़े कृष्ण मुरारी सखन पर हल्ला खूब मचायो रे पकड़ो री बृजनारि
पीताम्बर मुरली लई छिनाय श्याम को गोपी भेष बनाय कंचुकी कट लंहगा पहनाय नंद को घूंघट मार नचायो रे पकड़ो री बृजनारि
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