मैया चेहरे से घूंघट हटा दो मैंने जी भर के देखा नहीं है
मैंने माना गुनाहगार हूं मैं फिर भी दर पे मैं दौड़ी चली आई , सिर झुकाए तेरे दर खड़ी हूं माफी मांगने के काबिल नहीं हूं
ऐसा कोई भी दामन नहीं है जिसपे कोई भी धब्बा नहीं हो , फिर क्यों मेरे गुनाहों की सजा माफी मांगने के काबिल नहीं है
तेरी तारीफ यूं ही नहीं है डूबते को दिया है सहारा , मेरी नैया भंवर में फंसी है पार जाने के काबिल नहीं है
सारी दुनिया में ढ़ूंढा तुम्हें मां आज दीदार तेरा हुआ है , आ गई हूं तुम्हारी शरण में वापस जाने के काबिल नहीं हैं
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