तेरा मेरा प्यार कभी छूटे न हरि जी जग सारा रूठ जाये रूठना न हरि जी तेरा मेरा प्यार कभी छूटे न हरि जी
भगवन की कचहरी में पेश जब होयेंगे आगे तू वकील बन के खड़ी रहना हरि जी
मेरे गुनाहों की किताब जब खोली जाये हाथ तेरे कलम दवात होवे हरि जी
मैं तेरी पतंग मेरी डोर तेरे हाथों में भूल के भी डोर कभी छोड़ना न हरि जी
भवसागर से पार जब होयेंगे आगे तू मल्लाह बन के खड़ी रहना हरि जी
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