मेरे सतगुरु खींच लो जंजीर कि काया तड़प रही
बालपन हंस खेल गंवाया मेरे कपड़े हीर में हीर कि काया तड़प रही
आई जवानी करी मस्तानी मैंने खाया हलुआ खीर कि काया तड़प रही
आया बुढ़ापा मैं पछताई मेरी द्वारे पे डाल दयी खाट कि काया तड़प रही
बहू पोता कोई न बोले मेरी काया डावांडोल कि काया तड़प रही
कहत कबीर सुनो भाई साधो गुरु चरणों में लागा मेरा ध्यान कि काया तड़प रही
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