मेरी जिंदगी में, ग़मों का ज़हर है विष पीने वाले, छुपा तू किधर है ओ विष पीने वाले, छुपा तू किधर है..
ना तुमसा दयालु, कोई और भोले, ना तुमसा दयालु, कोई और भोले,
जो ठुकरा के अमृत को पिए विष के प्याले, लिया तीनों लोकों का,
भार अपने सर है, विष पीने वाले, छुपा तू किधर है, ओ विष पीने वाले, छुपा तू किधर है…
गरीबों का साथी ना बनता है कोई, फ़साने भी उनके ना सुनता है कोई,
यहाँ फेर ली अपनों ने भी नजर है, विष पीने वाले, छुपा तू किधर है,
ऐसाओ विष पीने वाले, छुपा तू किधर है…
बड़ी आस लेकर केतुमको पुकारा, करदो दया मुझपे, हूँ ग़म का मारा,
हे भोले होता ना मुझसे सबर है, विष पीने वाले, छुपा तू किधर है,
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