कहां पाई हनुमान अंगूठी कहां पाई
न तुम्हें देखा जनकपुरी में , राम ने तोड़ा धनुष सिया संग रघुराई
न तुम्हें देखा अवधपुरी में , राम का हुआ बनवास कि विपदा उन पे आई
न तुम्हें देखा गंगातट पे , केवट कियो गंगापार न लीन्ही उतराई
न तुम्हें देखा चित्रकूट में , जब हुआ भरत मिलाप खड़ाऊं भिजवाईं
न तुम्हें देखा पंचवटी में छल से रावण आय लियो रथ बैठाई
रामचन्द्र हैं सबके दाता , वो हैं कृपा निधान उन्होंने भिजवाई
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