माया माया माया हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
पहली रोटी मैंने गाय की बनाई , वो भी पतली पतली हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
दूजी रोटी मैंने अपनी बनाई , वो तो बनाई मोटी हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
तीजी रोटी मैंने कुत्ते की बनाई , वो तो बनाई छोटी हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
जब हरी कीर्तन को आयो बुलावा , डाल खटोला सो गई हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
यम के दूत जब लेने को आये , छिप के कोने में रोई हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
धर्मराज जब लेखा मांगे , लेखा में कुछ नही पायो हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
एक बार मोहे वापस भेजो करनी अपनी सुधारूं हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
क्या वापस भी जाके करूंगी , बेटों ने घर बार बांटे बहुओं ने लगा दिए ताले रे
माया माया माया हरी जी मैं तो माया में फंस गई रे
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