द्रौपदी भजन : कहाँ जा छिपे हो प्यारे कन्हैया यहां लाज मेरी लुटी(बहुत मार्मिक भजन जरूर सुनें)

 

 

कहां जा छिपे हो प्यारे कन्हैया यहां लाज मेरी लुटी जा रही है दुशासन के हाथों से तेरी द्रौपदी की सभा बीच साड़ी खिंची जा रही है 

जिन्होंने कभी मेरी सूरत न देखी वो देखेंगे नंगा बदन आज मेरा जुयें में पति मेरे हारे हैं बाजी ये महलों की रानी लुटी जा रही है 

गुरुदेव बोलो पितामह बोलो ये तुमसे तुम्हारी बहू पूंछती है सभा में नग्न आज करवा रहे हो कहो कुछ जुवां क्या घिसी जा रही है 

जो न खिंच सकेगा अगर चीर मेरा तो समझूंगी मोहन इशारा तुम्हारा कि साड़ी के हर तार में तुम छिपे हो इसी से ये साड़ी बढ़ी जा रही है 




Share:

No comments:

Post a Comment