कही मानो न वन को चलो तुम सिया घर बैठो न वन को चलो तुम सिया
रखा न कभी पैर पलंग से उतार के , कहीं बागों में जके फिरोगी सिया घर बैठो न वन को चलो तुम सिया
पत्ते बिछा के भूमि पे सोया न जायेगा , रात होगी अंधेरी न होगा दिया कही मानो न वन को चलो तुम सिया
खाने को फल मिलेंगे वो भी कभी कभी , खाने पड़ेंगे पत्ते वो भी कभी कभी सही जाये न जिंदगी वो तुमसे सिया घर बैठो न वन को चलो तुम सिया
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