जीना है बेकार जिसके घर में न लुगाई
दौड़ा दौड़ा लड़का कुम्हार के घर पहुंचा बढ़िया सी बनादे मेरी मिट्टी की लुगाई , मिट्टी की लुगाई वाने धूप में सुखाई आ गई बरसात वो तो बह गई लुगाई
दौड़ा दौड़ा लड़का बढ़ई के घर पहुंचा बढ़िया सी बनादे मेरी लकड़ी की लुगाई , लकड़ी की लुगाई वाने चूल्हे में बैठाई लग गई आग वो तो जल गई लुगाई
दौड़ा दौड़ा लड़का हलुवाई के घर पहुंचा बढ़िया सी बनादे मेरी बर्फी की लुगाई , बर्फी की लुगाई वाने थाली में सजाई आ गई पडोसिन वो तो खा गई लुगाई
दौड़ा दौड़ा लड़का सुनार के घर पहुंचा बढ़िया सी बनादे मेरी सोने की लुगाई , सोने की लुगाई वाने बक्से में सजाई आ गये चोर वो तो ले गए लुगाई
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