सिया रोती खड़ी वन में विपदा पड़ी नाथ आओ दुष्ट रावण से मुझको छोड़ाओ
भैया लक्ष्मण को जो न पठाती ये मुसीबत भी हरगिज न आती , नही तुमको खबर रो रही मैं इधर नाथ आओ दुष्ट रावण से मुझको छोड़ाओ
भेष जोगी का धर रावण आया आके द्वारे पे अलख जगाया , छल कपट है किया रथ में बैठा लिया नाथ आओ दुष्ट रावण से मुझको छोड़ाओ
करूणा कर जब सिया ने पुकारी सुन जटायु किया युक्त भारी , क्रोध रावण किया पक्षी घायल किया नाथ आओ दुष्ट रावण से मुझको छोड़ाओ
ले गया लंका गण को सिधाई वट अशोक के नीचे बिठाई नाथ विनती मेरी अर्ज सुन लो मेरी नाथ आओ दुष्ट रावण से मुझको छोड़ाओ
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