तुम जाओ पवनसुत जल्दी से अब रात गुजरने वाली है द्रोणगिरि से बूटी लाओ अब रात गुजरने वाली है
रघुवर के वचन मान हनुमत पहुंचे जाकर उस पर्वत पर बूटी का पता नही पाया अब रात गुजरने वाली है
तब लगे सोचने मन ही मन क्या पर्वत को ही लेके चलें हो रही देर है अब हमको अब रात गुजरने वाली है
अब बीत चुकी है रात बहुत अभी पवनपुत्र भी आये नही रो रो के राम कहें यूंही अब रात गुजरने वाली है
हनुमान संजीवन ले आये रामादल में जय जयकार हुआ बूटी पीते ही उठ गये लखनलाल अब रात गुजरने वाली है
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