मुझे गीता का ज्ञान सिखादे घनश्याम तेरा क्या बिगड़े
जब मेरे तन से प्राण ये निकलें अपने हाथों से तुलसी दल खिला दे घनश्याम तेरा क्या बिगड़े
चार लोग जब लेके निकलें मुख से राम ही राम कहला दे घनश्याम तेरा क्या बिगड़े
चन्दन की लकड़ी से चिता बनाना अपने यमुना किनारे लगवा दे घनश्याम तेरा क्या बिगड़े
बिनती ये मेरी न ठुकराना तेरी चरणों की धूल मिल जाये घनश्याम तेरा क्या बिगड़े
No comments:
Post a Comment