कभी ओम नाम गुण गाया न कभी हरि से ध्यान लगाया न कभी गई न गुरु के डेरे में मेरी उम्र बीत गई अंधेरे में
जब बचपन आया हंस हंस के मैंने गुड़ियां खेलीं सज धज के मैं तो रही मां बाप के घेरे में मेरी उम्र बीत गई अंधेरे में
जब आई जवानी बच बच के मेरा ब्याह रचाया रज रज के मैं तो रही पतिदेव के घेरे में मेरी उम्र बीत गई अंधेरे में
जब आया बुढ़ापा हल हल के परिवार चले बच बच के मैं तो रही मोह माया के घेरे में मेरी उम्र बीत गई अंधेरे में
अब ओम नाम गुण गाऊंगी अब हरि से ध्यान लगाऊंगी अब जाऊंगी गुरु के डेरे में मेरी उम्र बीत गई अंधेरे में
No comments:
Post a Comment