कृष्ण भजन :कहां जाती गुज़रिया अकड़ कर के तेरी फोड़ू मटकिया पकड़ कर के


कहां जाती गुजरिया अकड़ कर के तेरी फोड़ू मटकिया पकड़ कर के
अरे हो गुजर मतवाली जरा माखन तो अपना चखा दे
मेरे दिल को क्यों तड़फाये तुझे नेक तरस नही आये
तेरी पकड़ू कलइया मसल कर के तेरी फोड़ू मटकिया पकड़ कर के
 तेरा लहंगा घूम घुमारा जिसमे नाड़ा पड़ा है रेशम का
तेरी खिसके चुनरिया सिर पर से तेरी फोड़ू मटकिया पकड़ कर के
तेरा चेहरा क्यों मुरझाया क्या सासू से लड़ कर आईं क्या आईं
बलम से झगड़ कर के तेरी फोड़ू मटकिया पकड़ कर के
मोहन का है ये कहना गोरी एक रात यहां रहना
चली जाना न हमसे बिछुड़ कर के तेरी फोड़ू मटकिया पकड़ कर के

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