बिना हरि नाम गुजारा नहीं रे बाबरे सुन किनारा नहीं
नाव पुरानी चंचल धारा मौसम तूफानों का , खेते खेते हिम्मत हारी डगमग डोले नौका , दिल से जो तूने पुकारा नहीं रे बाबरे सुन किनारा नहीं
फंसता है क्यों मोह माया में ये है नागिन काली , डस जायेगी बचकर रहना चौतरफा मुंह वाली , फिर ये जन्म दोबारा नहीं रे बाबरे सुन किनारा नहीं
अब बन्दे तू इस नैया को कर दे प्रभू के हवाले , तेरे बस की बात नहीं है वो भगवान ही सभांलें , झूठा अभिमान गंवारा नहीं रे बाबरे सुन किनारा नहीं
ये मौका गर चूक गया तो फिर भुगते चौरासी , अब भी मूरख जाग नींद से सोच तू कर ले जरा सी , और तू कोई सहारा नही रे बाबरे सुन किनारा नहीं
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