इठलाती हुई बलखाती हुई चली पनिया भरन शिवनारि रे सागर में उतारी गागरिया
रुप देख के समुंदर बोला कौन पिता महतारी , कौन गांव की रहने वाली कौन पुरुष घर वाली अरे हां कौन पुरुष घर वाली गिरजा बोलीं हौले हौले छाया है रूप अपार रे
सागर में उतारी गागरिया
राजा हिमाचल पिता हमारे मैनावती महतारी , भोले नाथ हैं पति हमारे मैं उनकी घर वाली अरे हां मैं उनकी घर वाली जल ले जाऊं सती कहलाऊं ये सुन लो बचन हमार रे
सागर में उतारी गागरिया
सागर बोला छोड़ भोले को घर घर अलख जगाये ,चौदह रत्न गढ़े जल भीतर बैठी मौज उड़ाये ओ गौरा बैठी मौज उड़ाये भोले रंगिया पीवे भंगिया क्यों सह रही कष्ट अपार रे
सागर में उतारी गागरिया
क्रोधित होकर चली वो गौरा भोले के ढिंग आईं ,सागर ने जो वचन कहे हैं शिव को रहीं बताये ओ गौरा शिव को रहीं बताये
शिव किये जतन सागर को मंथन लिए चौदह रत्न निकाल रे सागर में उतारी गागरिया
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